दूर बहुत दूर क्षितिज के आसपास जब भी मैंने देखा है तुम्हारी तस्वीर क, तब तब तौला है अपनी तकदीर को, देखा है गौर से अपनी हथेलियों को जो मेहँदीविहीन खुरदुरी सी, किसी विवशता का अहसास करती हुई कोई दर्दभरी नज्म लिखने को बेकरार हैं।
हिंदी समय में कलावंती की रचनाएँ